NDTV की वेब्हाइट पर जाकर पर्सो की खबर भी दिखी. खबर के एन्ड मे यह लाइने थी :
"These are the desperate measures for desperate times.इन लाइनो को पड कर बडा कन्फ्यूशन सा हुआ. मेरे भेजे के मुताबिक सडक पर सेमि नेकेड चलना और आत्माहत्या करने मे काफि फरक है. शायद NDTV इस फरक को नही समझता है. या फिर हो सकता है कि उन्के राइटर और मेरी सेन्सिटिविटी मे कुछ फरक है. जो बात मुझे समझ मे नही आई, वह है आखिरी लाईन.
A young woman in Baroda walked semi naked to protest against her in-laws who were torturing her. In Saharanpur, a father tried to hang himself because the local police would not help him.
How far does a person have to go to be heard?"
मीडिया में ऎसा पड़्ना थोड़ा अजीब सा लगता है. एक आदमी को किस हद तक जाना पडता है अपनी आवाज़ सुनवाने के लिये ? आखिर खबर को हमारे ड्राइंग रूम तक लाने का काम तो मीडिया का ही है. ये टीवी चैनल वाले ही तो चुन्ते हैं इन खबरों को. अगर कोइ आदमी "Desperate Measure" ले रहा है तो वो मीडिया अट्टेंशन के लिये ही है. क्योंकि जब तक वोह ऎसा काम नही करेगा तब तक मीडिया उसे एयर टाइम नही देगा. फिर ऎसा सवाल पूछने का प्वाइंट क्या है ?
इस बात पर मेरे भी कुछ सवाल हैं. एक करोड़्पति को जेल हो गई. करोड़्पति ने अपना जुर्म कबूल किया. केस बड़ा हाइ प्रोफाइल था और काफी कवरेज मिला. सजा सुनाए जाने के बाद भी मीडिया का जोश कम नही हुआ. कौन सी जेल में जाएगा करोड़्पति ? क्या पेहनेगा, क्या खाएगा, कितना सोयेगा ? क्या सज़ा कम या ज़्यादा थी ? क्या होगा आगे ?
संजय दत्त ने न हि तो आत्मदेह की कोशिश की है न हि सड़्क पर सेमि-नेकड उतरे हैं. मुझे नही पता कि उन्होंने ऎसा कौन सा "Desperate Measure" लिया है कि उन्की प्रार्थनाएं और माफियां हमें दिन भर सुनाई जा रही हैं. पर उनकी टेक्नीक सत्याग्रह से ज्यादा इफेक्टिव है. वर्ना हम इन सत्याग्रहियों के बारे में ज्यादा सुनते.